– काशी वंदन – 2024 में आपका स्वागत है
त्रिलोक न्यारी, भगवान शिव की प्यारी, भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में सुविख्यात काशी, प्राचीन काल से ही धर्म, दर्शन, अध्यात्म, शिक्षा, कला, साहित्य एवं संगीत के क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है। काशी की संगीत परंपरा अत्यंत प्राचीन है, जिसमें गायन, वादन, नर्तन की विभिन्न शैलियों के प्रणेता विद्वान एवं कलाविदों के रूप में काशी के महान व्यक्तियों ने अनेकों कीर्तिमान स्थापित कर काशी के गौरव को बढ़ाया है। काशी उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत, उपशास्त्रीय संगीत और लोक संगीत की विभिन्न विधाओं से अत्यंत समृद्ध है। काशी का इतिहास रहा है कि यहां संगीत की परंपरा मंदिर व दरबार दोनों के ही आश्रय में फली फूली है।
प्रस्तावित विधाएँ
- शास्त्रीय,
- उपशास्त्रीय
- लोक गायन
- तबला, सितार, सरोद, वायलिन,
- मृदंगम, शहनाई, बांसुरी, पखावज,
- गिटार, सारंगी, वीणा
- कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी
- मोहिनीअट्टम, कुचीपुड़ी, कथकली
- सत्रिया आदि। लोकनृत्य
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“काशी, काशी में ही स्थित होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाली है अर्थात् सम्पूर्ण विश्व का प्रकाश काशी के प्रकाश से ही है। जिसने काशी के इस प्रकाश के ज्ञानस्वरूप को जान लिया, वही काशी के सम्पूर्ण फल को प्राप्त कर सकता है।”